Yah Ek Best Startup Idea Ne Kaise Viraj Ki Jindgi Badal Di!

एक आईडिया बदल दे जिंदगी! यह टैग लाइन आपने शायद कई बार सुनी होगी। ऐसी ही एक रियल कहानी बताने जा रहा हूँ जो आपको बहुत प्रेरित कर सकती है। यह कहानी है ऐसे एक बेस्ट स्टार्टअप आयडिया (Best Startup Idea) की जिसने सामान्य सा बेफिक्र विराज की पूरी जिंदगी बदल कर रख दी। आप ने आज तक बहुत सारी मोटिवेशनल कहानियाँ पढ़ी होगी पर यह कहानी उन सबसे अलग और खास है।

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Best Startup Idea

एक सीधा सादा सा गांव का लड़का जिसके पास अपने जीवन में कोई लक्ष्य नहीं था और जो अपने जीवन को बर्बाद कर रहा था। जिसके परिवार ने भी उससे उम्मीद छोड़ दी थी पर फिर जीवन ने उसके गाल पर एक ऐसा तमाचा जड़ा की लड़का मिटी से सीधा सोना हो गया! तो चलिए जानते है प्रेरणा से भरपूर विराज की यह कहानी विस्तार से।

कहानी शुरू होती है गुजरात के सबसे बड़े जिले कच्छ के एक छोटे से शहर मांडवी से। मोहनभाई मांडवी के एक रिसोर्ट में मैनेजर की पोस्ट पर थे। उनके परिवार में कुल चार सदस्य थे। उनकी पत्नी माधुरी, बड़ी बेटी दिया और छोटा बेटा विराज।

विराज कहने को तो छोटा था पर उसकी और बड़ी बहन दिव्या की उम्र में बस डेढ़ ही साल का फर्क था। पिता मोहनलाल एक अच्छी नौकरी करते थे तो उन्होंने दोनों बच्चो को शिक्षण भी बहुत अच्छा दिलाया था। बेटी दिव्या ने 12वीं कक्षा अच्छे मार्क्स से पास की और फिर अपने नजदीक के ही एक कॉलेज में एडमिशन लेकर B.A. करने लगी। माता-पिता दोनों दिव्या को लेकर बहुत ही निश्चिन्त थे।

पुरे परिवार को अगर किसी की चिंता थी तो वह था विराज। विराज बचपन से ही पढाई में अति साधारण सा लड़का था। उसने कक्षा 10 और 12वी की बोर्ड भी बड़ी ही मुश्किली से पास की थी। उसकी इच्छा तो आगे पढ़ने की थी ही नहीं पर फिर भी पिता के डर से उसने B.A. में एड्मिसन ले लिया।

विराज पढाई में तो कमजोर था ही पर उसके पास ओर भी कोई हुनर या टेलेंट नहीं था। बचपन से ही घर के छोटे बेटे होने के कारण उसके मुँह मांगी हर चीज़ मिली जिससे वह एक आलसी और बेजिमेदार लड़का बन गया था।

वह घर से कॉलेज के नाम पर निकलता था और कॉलेज न जाकर अपने आवारा दोस्तों के साथ पुरे दिन घूमता रहता था और मस्ती करता रहता था। वह कॉलेज में भी अब फ़ैल होना शुरू हो गया था पर उसे इस बात की बिलकुल फ़िक्र नहीं थी। विराज की माता कई बार उसे बड़े ही प्रेम से समजाती थी की वह आज छोटा है पर एक दिन उसे बड़ा तो बनना ही है और अगर उसे अपने फ़र्ज़ एक अच्छे बड़े व्यक्ति की तरह निभाने है तो उसे जीवन में सीरियस होना पड़ेगा। माँ की कही लगभग सारी बातो को वह एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकल देता था।

यही बात कुछ कड़क रवैये में पिता मोहनलाल भी उसे अक्सर समजाते थे पर विराज कहा किसी की सुनने वाला था? वह तो बस अपने ही आनंद में मग्न रहता था। 

पिता की अच्छी नौकरी के कारण घर की आर्थिक स्थिति ठीक थी तो सब कुछ सही सही जा रहा था, तभी हर बार की तरह कुदरतने अपने कुछ कठीन दाव इस छोटे से परिवार पर चला दिए।

मोहनलाल और उनकी पत्नी माधुरी एक रात अपनी कार में सवार होकर किसी प्रसंग से अपने घर की और लौट रहे थे तभी अचानक एक बड़ी ही तेजी से आते हुए ट्रक ने उनकी कार को टकर मारी! पिता मोहनलाल का स्थल पर ही अवसान हो गया। माता माधुरी बड़ी गंभीर रूप से घायल हो गई थी और उनका बचना भी बड़ा मुश्किल लग रहा था।

जैसे ही विराज और दिव्या को यह खबर मिली तो मानों दोनों का कलेजा मुँह में आ गया। दिव्या बड़े जोर जोर से रोने लगी और रोते रोते मूर्छित हो गई। विराज को तो मानो यह कोई बुरा सपना लग रहा था। उसे अभी भी इस बात पर यकीन नहीं था की उसके पिता अब नहीं रहे और माता भी अपनी कुछ आखरी साँस गिन रही है।

विराज ने पहले खुद को और फिर बहन दिव्या को संभाला। दोनों हॉस्पिटल की तरह दौड़े, डॉक्टर ने मोहनलाल को तो कब का मृत जाहिर कर दिया था पर माता अभी भी एमर्जेन्सी वॉर्ड में थी। डॉक्टर बहार आये, हताशा भरी उनकी नजर कुछ गलत या  कहूं की बहुत बुरा होने का पैगाम दे रही थी। 

डॉक्टर ने पूछा, “इनके साथ कौन है?” दिव्या तो किसी पत्थर की मूरत के जैसी जम गई थी। विराज ने कुछ हिमत जुटाई और वह आगे आया। डॉक्टर ने बड़े ही दुःखी स्वरों में कहा, “आप की माताजी के पास अब ज्यादा समय नहीं बचा तो आप एक आखरी बार उनसे मिल लीजिये।”

विराज की आंखे और ज्यादा अंदर धस गई, पूरा शरीर सुन्न पड़ गया। उसकी आँखों में से किसी फौआरे की तरह आँशु बहने लगे। उसे कुछ नहीं सूज रहा था, पूरी दुनिया उसे अपने सामने घूमती मालूम पड़ रही थी। एकाद गरम साँस बहार छोड़ते हुए उसेने धीरे से अपना सर हां में झुकाया। डॉक्टर विराज को उसकी माता के कमरे में ले गए। खून से लथपथ पड़ी, दर्द से जिजक रही माँ के इस हाल को देखकर विराज का पूरा शरीर कांपने लगा। जैसे तैसे करके वह उनके कुछ करीब पंहुचा तो माता ने अपना हाथ बढ़ाया। विराज ने बिना एक क्षण का भी विलम्ब किये माता का हाथ दौड़ के पकड़ लिया।

माँ के प्राण पखेरू उड़ गया और इसी रात के खत्म होते होते, विराज और दिव्या की पूरी जिंदगी बदल गई। दोनों भाई बहन एक ही जटके में अनाथ हो गए। कुछ रिश्तेदार आये पर प्रशंगो के खत्म होते ही उन्हें छोड़ कर चले गए।

स्वर्गीय मोहनलाल और माता माधुरी की बड़ी ही इच्छाओ के कारण उन्होंने कुछ ही समय पहले किस्तों पर एक घर लिया था जो उन्हें बड़ा प्यारा था। अब बस इस घर में सिर्फ दो जीव दिव्या और विराज ही बच गए थे।

माता-पिता द्वारा बड़े चाव से ख़रीदे गए इस घर को विराज ऐसे हाथो से जाने देना नहीं चाहता था दूसरी तरफ उसके पास इतने पैसे भी नहीं थे जो वो किस्ते चूका सके। माता-पिता ने कुछ बचत की थी जो उनके श्राद में खर्च हो गई और बाकी बचत मकान ख़रीद ने में लगा दी थी।

विराज कुछ कमाता-धमता तो था नहीं। उसने कुछ रिश्तेदारों के पास से कर्ज लेकर घर की किस्ते भरी। मकान की किस्ते तो भर गई थी पर अभी भी बहन की पढाई की जिमेदारी थी। घर के कुछ ओर भी मामूली खर्चे थे। विराज जीवन में अब कुछ सिरियस तो हुआ था।  बड़ी बहन दिव्या पढाई में अच्छी थी इस लिए उसकी पढाई विराज ने जारी रखवाई थी। अब किसी को तो कमाना पडेगाना? यही सोच कर विराज जीवन में पहली बार नौकरी ढूंढने के लिए निकला।

विराज के पास न तो कोई अच्छी क्वालिफिकेशन थी और ना ही कोई तजुर्बा या स्किल। वह रोज सुबह से शाम तक शहर की गालिओ में नौकरी की तलाश में भटकने लगा।

दिव्या अपने भाई की मज़बूरी भली भाती समजती थी तो उसने भी कॉलेज से वापस आकर बच्चो को ट्यूशन पढ़ना शुरू कर दिया।

देखते ही देखते महीना गुजर गया था। घर की किस्ते फिर आ गई थी पर ना ही विराज को नौकरी मिली या ना ही उनके पास अब कोई आमदनी बची थी। ख़राब परिस्थिति को देख कर दोनों यतीम बच्चो का साथ अब रिश्तेदारों ने भी छोड़ दिया था। 

कुछ पैसे उधार लेने की नियत से विराज ने अपने सभी रिश्तेदारों को फ़ोन किया पर लगभग ने उसका फ़ोन ही नहीं उठाया। विराज ने अपने दोस्तों से भी मदद मांगी पर विराज की आर्थिक स्थिति देख कर दोस्त भी पीछे हट गए थे।

रिस्तें और जीवन का यह खेल अब विराज समझता जा  रहा था। उसे अब किसी पर भरोसा नहीं रहा था। वह धीरे धीरे एक अल्हड से लड़के में से जवाबदार पुरुष बनता जा रहा था।

घर में बचे एक मात्र साधन अपनी पसंदीदा मोटरसाइकिल को बेचकर उसने किश्त भर दी। अब उसे अगले महीने की फ़िक्र सताने लगी। साथ ही साथ बहन की कॉलेज फीस भी भरनी थी। सारी चिंता ऐ विराज की रातो की नींद खा गई। उसने जो भी काम मिले वो करने का सोचा, चाहे कम आये पर घर में कुछ तो आमदनी आये। यह सोच वो सो गया।

अगले दिन सुबह जल्दी उठ अपने बेग में पुराने कपड़ो की एक जोड़ डालकर वह निकल पड़ा। गांव के कुछ खेतो में जा कर उसने काम माँगा और उसे वहा मजदूरी का काम मिल भी गया।

विराज ने 300 रुपए की दिहाड़ी के लिए पुरे दिन कड़कती धूप के तले खेत में काम करता रहा। उसे खुद की ही स्थिति पर दया आने लगी अपने पुराने दिन याद आने लगे। जब वह माँ – बाप की छत्र छाया में पुरे दिन बस आवारागर्दी करता फिरता था।

शाम को विराज ने 300 रुपए ले जा कर अपनी बहन दिव्या के हाथो में रखे। विराज का चहरा और उसके सख्त हाथ इस बात की गवाही दे रहे थे की वो क्या काम करके आ रहा है। दिव्या भी अपने भाई की इस हालत को न देख पाई और रोने लगी।

विराज ने उसे शांत किया और अगले दिन फिर से वह मजदूरी पर निकल गया। विराज अब रोज दिहाड़ी पर जाने लगा और तनतोड़ मेहनत करने लगा। दिव्या ने भी थोड़ी मेहनत मशक्त करके ट्यूशन में आने वाले बच्चो की संख्या बढ़ा दी। अब मकान की क़िस्त आते ही उन्होंने क़िस्त भर तो दी पर इस में उनका पूरा बटवा खाली हो गया।

घर में राशन लाने तक के पैसे नहीं रहे। विराज और दिव्या यह बात समज गए थे की ऐसी मजदूरी पे गुजरा करना मुश्किल है। पर अब आगे क्या करना है और कैसे करना है यह उन्हें मालूम नहीं था। विराज रोज की तरह दिहाड़ी पर गया था। जब खाना खाते वक्त उसने अपना फ़ोन ननिकाला और इंस्टाग्राम खोला तब उसे एक वीडियो दिखाई दिया। जो था भारत की जानी मानी संस्था के फाउंडर श्री सुरेश बावरवा जी का। वह एक बिज़नस कोच और मोटिवेशन स्पीकर भी है।

Kaise Pata Chala Best Startup Idea Ke Bareme:

वीडियो एक प्रचार था उस ऑनलाइन प्रोग्राम का जहाँ सुरेश सर 5 ऐसे बिलकुल लॉ या बिना इन्वेस्टमेंट वाले अजोड़ स्टार्टअप (Best Startup Idea) की माहिती देने वाले थे। किस्मत का पैया बदला, विराज को क्या सुजा की वह जट से रजिस्टर हो गया।

Kaun Se Best Startup Idea Ne Badli Viraj Ki Jindgi:

सुरेश बावरवा सर का लाइव वर्कशॉप अगले दिन रात को था। विराज ने यह बात दिव्या को भी बताई पर दिव्या को इसमें कुछ ज्यादा रूचि न लगी। फिर भी उसने अपने भाई के साथ यह लाइव वर्कशॉप अटेंड करने का सोचा।

लाइव वर्कशॉप की घडी आई, दोनों भाई-बहन इकठे बैंठ गये। सेशन शुरू हुआ और सुरेश सर ने बड़े ही प्यार से उनके साथ ऑनलाइन जुड़े सेंकडो लोगो का स्वागत किया। सर ने एक एक करके बड़ी ही आसान भाषा में बड़े ही रोमांचित तरीके से हर बिसनेस स्टार्टअप आईडिया (Startup Idea) को एक्सप्लेन किया।

सुरेश बावरवा के एक एक शब्द ने विराज में हिमत की एक नई आग फुक दी। दिव्या, जिसे अभी तक इन सब में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी उसका मुख भी खुला के खुला रह गया।

सबसे आखिर में सुरेश जी ने अपने सबसे बेस्ट और जो वह 12 सालो से चला रहे है उस बेस्ट बिज़नेस आईडिया (Best Startup Idea) के बारे में माहिती दी। यह आइडिया था अपने ही शहर में छोटे बच्चो का ट्रेनिंग सेंटर खोलने का। दिव्या को यह बड़ा बिल्चस्प लगा और इन्वेस्टमेंट बिलकुल ही कम थी या बिलकुल नहीं थी यह सुनकर विराज भी बड़ी ध्यान से सुनने लगा।

सुरेश सर ने सारी चीजों को बड़ी अच्छी तरह समझाया और देखते ही देखते 3 घंटे का लंबा वर्कशॉप खत्म हो गया।  विराज और दिव्या दोनों सुरेश बावरवा सर और उनके ट्रेनिंग सेंटर आयडिया से बड़े प्रभावित हो उठे।

Is Best Startup Idea Ne Ratki Nind Uda Di:

दोनों को उस रात ठीक से नींद भी न आई और अगली सुबह होते ही विराज ने सीधा सुरेश सर को कांटेक्ट किया। फ़ोन उनकी ऑफिस में लगा। विराज ने अपनी वर्तमान परिस्थिति बताई और सुरेश सर से बात करने की इच्छा जताई। कुछ ही मिनटों में ऑफिस स्टाफ ने फ़ोन सुरेश सर से जोड़ दिया और अब विराज की सीधी उन से बात हुई।

सुरेश सर ने बड़ी शांति से विराज की बात सुनी फिर दिव्या से भी बात की। सर ने उनके माता-पिता की मौत पर अफ़सोस जताया और फिर ऊर्जा से भरपूर स्वरों में बोले, “डोंट वरी, सारी चिंता छोड़ दो!! आज से आप हमारे ज़ेम्स के परिवार का हिसा है। हम आप को सिखायेगा की कैसे मुसीबतो को मुँह की पछाड़ देनी है!”

विराज और दिव्या बड़े ही हिम्मत आ गई। वह सुरेश सर के कहे रस्ते पर चल पड़े और ट्रेनिंग सेंटर को सेटप करने में लग गए। सुरेश सर ने हर जगह उन्हें गाइडेंस दी और बिलकुल ही न के बराबर इन्वेस्टमेंट में उन्हें एक अपना खुद का सेण्टर खोल दिया।

ट्रेनिंग सेंटर तो खुल गया था पर अभी वह पूरी तरह शुरू नहीं हुआ था और माकन की किस्ते आ गई। अब विराज और दिव्या ने पीछे न हटने का सोच ही लिआ था। दिल पर पत्थर रखकर दिव्या ने अपने गहने गिरवी रखे और इन पैसो से किस्त भरी। साथ ही साथ उन्होंने ने यह भी प्रण लिआ की यह उनकी लाचारी का आखिर माह होगा।

दोनों भाई बहन सुरेश सर के पास पहुंचे। सर ने बड़ी अच्छी तरह से उन्हें ट्रेनिंग दी और ट्रेनिंग सेंटर के बिज़नेस में आनी वाली हर मुसीबत से लड़ने के लिए पहले ही तैयार कर दिया। ट्रैनिंग खत्म करके दोनों अपने शहर लौटे। अगले ही दिन सर के बताये गए मुजब मार्केटिंग शुरू कर दी और देखते ही देखते मात्र 3 दिनों में  बैच फूल हो गई।

ट्रेनिंग में सीखे हर सबक को बड़े अच्छे से याद करके और बीच बीच में सुरेश सर की मदद ले कर दोनों भाई बहन ने बड़े ही अच्छे तरीके से बच्चों को माइंड पावर और ब्रेन डेवलोपमेन्ट का वर्कशॉप करवाया। रिजल्ट बहुत ही अदभुत मिले।

देखते ही देखते शहर में उनके ट्रैनिंग सेंटर का नाम हो गया। जिसका कारण उनकी ट्रेनिंग और उसे मिलता प्रभावित रिजल्ट था। मकान के क़िस्त की तारीख आई और अपने वादे के मुताबित उनका लाचारी वाला महीना खत्म हो गया था। उन्होंने किस्त तो चूका दी पर अभी भी उनके पास अच्छे खासे पैसे बच गए थे।

धीरे धीरे समय बीतता गया। विराज और दिव्या नए नए कामयाबी के शिखर-सर करने लगे। उन्होंने मकान की किस्ते चूका दी, गिरवी पड़े गहने चूका दिया और साथ ही साथ जिन लोगो से उन्हों ने उधार लिआ था उनके पैसे भी वापस कर दिया।  

अपनी मेहनत की कमाई से विराज बहुत जल्द अपनी पसंदीदा गाड़ी ले आया और दिव्या अपने पढाई के सपने को साकार करने के लिए विदेश चली गई। आज विराज अकेला बड़ी ही सफलता पूर्वक अपना सेंटर चलाता है और लोगो को प्रेणना देता है।

काबिलियत सबके अंदर पड़ी होती है, पर अगर उसे सही मार्गदर्शन मिले और कुछ करने की चाहत हो और मिला अवसर को अपनाने का भरोषा हो तो हम जीवन में बहुत आगे जा सकते है।

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