आज आप संघर्षगाथा के माध्यम से पढ़ने जा रहे हो एक ऐसी स्टूडेंट मोटिवेशनल स्टोरी (Motivational Story for Student) जो आप के दिल में भी मोटिवेशन की आग पैदा कर देंगी। एक साधारण सा बच्चा नीरज कैसे अपने जीवन के लक्ष्य को हारकर जीत जाता है। यह आपको शिखायेगा की हार न मानना भी जीत है। तो चलिए जानते है स्टूडेंट के लिए प्रेरणादायक कहानी (Inspirational Story for Student) विस्तार से।
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नीरज एक छोटे से शहर का साधारण सा बच्चा था। नीरज के परिवार में कुल तीन सदस्य थे। मम्मी, पापा और नीरज। वह हमेशा ही पढ़ाई में ना ही बहुत अच्छा रहा था और ना ही बहुत ख़राब।पर नीरज को हमेशा पढाई से ज्यादा खेलकूद के प्रति लगाव रहा था, पर डिग्री और पढाई को ही सब कुछ मानने वाले नीरज के पापा, नीरज की यह बात कभी नहीं समज सके थे।
मम्मी नीरजकी खेलकूद के प्रति लगाव की भावना को बड़ी अच्छी तरह समजती थी पर वह नीरज के लिए कुछ नहीं कर सकती थी।
अब नीरज भी लेगा दौड़ में भाग:
शहर में हर साल एक धावन स्पर्धा यानि की रेस होती थी। यह रेस पुरे 5 किलोमीटर की थी। जिसमें यह अंतर पहले पूरा करनेवाले धावक को विजेता माना जाता था।रेस में आस-पड़ोस के शहर के लोग भी हर साल भाग लेते थे। जिससे की मुकाबला और ज्यादा कठिन बन जाता था। विजेता धावक को पूरा शहर सम्मान की नजरो से देखता था और उसकी खूब वाह-वाई होती थी। इस लिए हर साल धावकप्रतिभागी विजेता बनने के लिए अपनी पूरी जान लगा देतेथे।
नीरज की इच्छा हमेशा से इस धावन स्पर्धा में भाग लेने की रही थी पर उसके पिता उसे कोई न कोई कारण बता कर मना कर देते थे। स्पर्धा के रजिस्ट्रेशन शुरू हो गए थे।नीरज ने इस बार तो ठान ही लिया था की वह किसी भी कीमत पर इस स्पर्धामें भाग लेगा और उसे जीतेगा। नीरज अपनी स्कुल का सबसे अच्छा धावक था तो उसे लगता था की वह यह रेस बड़ी आसानी से जीत सकता है।
नीरज ने खूब जिद की, कुछ समय तक खाना नहीं खाया और ऐसे ही उसने माता-पिता को मना लिया। उसने रेस के लिए अपना नाम रजिस्टर भी करवा लिया। अब जब नीरज को रेस के लिए मेहनत और प्रैक्टिस करनी चाहिए तब उससे छोड़ वह अपने मित्रो और सारे शहर में डींगे मारने लगा की, वही यह स्पर्धा जीतगा, क्योंकि वह अपनी स्कुल का सबसे अच्छा धावक है।
नीरज के माता पिता समझ रहे थे की वह अति आत्मविश्वाशी हो रहा है, जो उसके लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं। उन्होंने यह बात नीरज को भी समजाना चाही पर वह अभी यह बात समझने की हालत में कहाँ था?
देखते ही देखते दिन बीतते चले गए और आखिरकार सब्र का अंत आया। आज रेस होनी थी। नीरज तो पहले से ही अपनी जीत की खुशी मनाने लगा था और साथ ही साथ लोगों के सामने वह रेस को बहुत आसान बताकर अपनी बढ़ाई कर रहा था।लगभग आज सारा शहर और आसपास के शहर के भी लोग अपने-अपने काम-धंधो को ताला लगाकर यह स्पर्धा देखने आये थे। लोगो की भीड़ ही बता रही थी की यह स्पर्धा कितनी खास है।
नीरज और उसके अभिमान की हुई करारी हार:
3…2…और…1 दौड़ शुरू हो गई। नीरज तो मानो बंदूक की गोली की तरह निकला और देखते ही देखतेसबसे आगे हो गया। सब बड़ी जोर जोर से उसका नाम पुकार कर उसे प्रोत्शहान दे रहे थे। नीरज की माता भी उन लोगो में शामिल थी। उसके पिता बस एक कोने में चुप चाप खड़े यह नजाराऐसेदेख रहे थे, जैसे उनके लिए यह सब फ़िज़ूल और समय की बर्बादी हो।
नीरज ने शुरुआत तो बहुत अच्छी की पर कुछ ही दुरी के बाद वह पहले से कुछ धीमा पड़ गया। इसके पीछे शायद कारण यह था की उसने काफी समय से दौड़ की प्रैक्टिस नहीं की थी।
नीरज की गति धीरे धीरे कम से ओर ज्यादा कम होने लगी। देखते ही देखते दूसरे धावक नीरज को पीछे छोड़ आगे निकल गए। अब मैदान में नीरज के नाम की नहीं पर जो दूसरे खिलाडी आगे निकले है उनके नाम के नारे नारे लगने लगे।एक ही पल में मानों सारा मैदान, सारे लोग उससे भूल ही गए।
नीरज की माता यह देख परेशान हो गई। उसके पिता के चेहरे पर अभी भी कोई भाव नहीं था। नीरज देखते ही देखते सबसे पीछे हो गया। अब वह थकता जा रहा था और रास्ता तो अभी आधा भी पूरा नहीं हुआ था।नीरज को अपने पैरो में अब बहुत तेज दर्द होना शुरू हो गया था। हर कदम के साथ उसके मुँहसे छोटी चीख निकल जाती। दौड़ना तो उसने कब का बंध कर दिया था अब वो पैर घिसड़ कर चलने लगा था।
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इतने में ही अचानक उसे ठोकर लगी और वह मुँह के बल जमीन पर गिर गया। नीरज से अब खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था और उसने यह मान भी लिआ था की अब वह इस रेस कभी नहीं जीत सकता और ना ही उसमें अब इतनी ताकत बची है।
रेस तो बड़ी आसान है और उसे चुटकियों में जीत जायेगा ऐसा कहनेवाला नीरज आधी रेस भी पूरी नहीं कर पाया और दौड़ से बहार होने वाला पहला धावक बन गया। लोग यह देख उस पर हँसने लगे।उसकी माता ने उसको जगाया और फिर पिता उससे कंधे पर बैठा कर घर ले गए। नीरज को कुछ खास नहीं लगा था। मामूली से ज़ख्म थे और थक गया था।
नीरज ने आंखें खोली और बिस्तर के सिरहाने बैठी हुई माँ को देखा। माँ रोने लगी। नीरज को अब अपनी गलती का एहसास हो चूका था की उसने कितनी बड़ी भूल कर दी है। पिता अब भी उससे बात नहीं कर रहे थे।
लोग उड़ाते नीरज का मजाक और देते ताने:
नीरज की असली परेशानी तो अब शुरू हुई। जैसे वह बहार जाता वैसे ही लोग उसे देखकर उसका मजाक बनाते। टोंट देते, उसी की बाते सुनाकर उससे चिढ़ाते। यहाँ तक की उसके मित्रोने भी उसका मजाक उड़ाना और उसे दूर रहना शुरू कर दिया था।
नीरज को अपनी गलती का एहसास तो हो चूका था पर अब इसे वह कैसे सुधारे यह नहीं समज आ रहा था। लोगों के तानो के डर से नीरज ने घर से बहार जाना मानो बिलकुल बंध ही कर दिया था। उसके दोस्त भी अब नहीं रहे थे। उसके पिताने तो उसे बात करना ही छोड़ दिया था।
नीरज पूरे दिन अपने कमरे में बैठकर उसके द्वारा की गई गलतिओ पर पछताता रहता। पर अब क्या फायदा जब चिड़िया चुग गई खेत? उससे अब मन में आत्महत्या और कही भाग जाने जैसे विचार आने लगे। उसकी दिमागी हालत दिन-ब-दिन और ख़राब होती जा रही थी। न वह किसी से बात करता और ना ही कोई ओर उसे बात करने को तैयार था।
रात के करीब 2 बजे का समय था। नीरज बैठा खिड़की से बहार देख रहा था और सोच रहा था की उसने अगर रेस में भाग ही न लिए होता तो कितना अच्छा होता। तो आज उसके दोस्त उसके साथ होते और उसका कोई मजाक भी न बनाता।
पिता के शब्दों ने बदली जिंदगी:
नीरज यह सब सोच ही रहा था तब उसके पिता रूम में आये। आकर वह नीरज के पास बैठे। नीरज ने उन्हें देखा और सिर जुका लिआ मानो गलती की माफ़ी मांग रहा हो। पिता ने एक गहरी साँस ली और बोले,”जीवन में हर व्यक्ति गलतियाँ करता है पर बहुत कम लोग होते है जो उससे सिखकर अपने जीवन को एक आदर्श बनाते है। ज्यादातर लोग तो नीरज तुम्हारी तरह बस हार कर बैठ जाते है और जीवन में कभी कुछ नहीं कर पाते।”
नीरज बिना पलक झपकाए पिता की ओर देखता रह गया। कई महिनो बाद आज पिताजी ने उससे बात की थी। उसने हां में सर हिलाया। पिताने नीरज के सर पर हाथ रखते हुए कहाँ,
“बेटा, तुम हार गए मुझे इस बात का जरा भी दुःख नहीं है। हर कोई अपने जीवन में कहीं न कहीं, कभी न कभी हारता है। मुझे दुःख है तो बस इस बात का है की तुम अपने अहंकार की वजह से हार गए। तुम गिर जाते हो और फिर तुम वापस खड़े भी नहीं होते तो तुम्हे कोई हक़ नहीं मेरे बेटे कहलाने का! अगर चाहते हो की लोग तुम्हारा मजाक न बनाय और तुम्हारी इज़्ज़त करे तो बातों से नहीं पर अपने काम से जवाब देना शुरू कर दो।“
नीरज की आँखों में आंसू आ गए पर यह आंसू दुःखके नहीं थे, खुशी के थे। अब उससे मालूम था क्या करना है और अब तो उसके पिता भी उसके साथ थे। पिता कमरे से चले गए और नीरज भी अपने आंसू पोछ सो गया।
सुबह हुई और मानो नीरज का एक नया अवतार हुआ। वह एक बड़ी सी मुश्कान के साथ अपने कमरे से बहार आया। सब के साथ बैठकर नास्ता किया और स्कुल के लिए चला गया। आज भी उसका मजाक उड़ाया गया पर उससे आज उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। यह देख सब दंग रह गए।
वापस घर आया और अपने दौड़ने वाले जूते पहन निकल गया प्रैक्टिस करने के लिए। रस्ते में लोगो ने बहुत ताने दिए की, “क्यों भाई? फिर से हारने की तैयारी कर रहे हो क्या?” बहुत से लोग उस पर हँसे। पर उसने किसी की बातों पर ध्यान नहीं दिया।
अब रोज नीरज सुबह और शाम दौड़ने की प्रैक्टिस करने जाने लगा। हररोज कोई न कोई उसका मजाक बनता पर वह उससे बिलकुल अनदेखा कर देता। धीरे धीरे नीरज खुद को ओर बेहतर बनाना शुरू कर दिया। यह सिलसिला ऐसेचलता रहा और देखते ही देखते एक साल बीत गया और फिरसे धावन स्पर्धा के रजिस्ट्रेशन शुरू हो गए। नीरज ने भी अपना नाम लिखवा दिया।
लोग आपकी अच्छाइयों के बारे में भूल जाते है पर वह कभी आपकी गलतियाँ नहीं भूलते। यह बात नीरज भली-भाती समझ चूका था। लोग अब भी उसका मजाक बना रहे थे। यहाँ तक की नीरज की माँ भी उसे रेस में भाग न लेने की सलाह देती है। बस एक नीरज के पिता ही थे जो उसका मौन रहकर समर्थन करते है।
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फिर से लिया रेस में भाग:
फिर से रेस का दिन आ जाता है। इस बार कोई बड़ी बड़ी बाते करने की जगह चुपचाप बड़ी खामोशी से नीरज अपनी जग़ह लेता है। 3…2… और…1 गिनती पर रेस शुरू होती है।
नीरज फिर से एक अच्छी शुरुआत करता है पर इस बार वह सबसे आगे नहीं होता और ना ही उसके नाम के नारे लग रहे होते है। लोगो का ध्यान बस पहले धावक पर ही होता है। इस बार तो नीरज की माताजी भी नारे नहीं लगाती और बस चुप चाप कोने में खड़ी देख रही होती है।
देखते ही देखते बहुत से धावक रेस से बहार हो जाते है और तक़रीबन एक चौथाई रेस ख़त्म हो जाती है। नीरज अभी भी तीसरे या चौथे स्थान पर होता है। अब एकाएक सारे धावक अपनी गति बढ़ाते है। लोगों के हाथ मुँह में चले जाते है जब वह देखते है की नीरज एकाएक सबसे आगे हो गया था।
सारा मैदान दंग रह जाता है। अब मात्र कुछ ही दुरी का अंतर बचा होता है और नीरज विजेता बनने से कुछ ही कदम दूर होता है। तभी अचानक नीरज के भाग्य उसका साथ छोड़ देता है और बड़ी तेजी से दौड़ता नीरज ठोकर लगने के कारण धड़ाम से जमीन पर गिरता है।
लोगों के मुख से एक ठंडी आह…निकल जाती है। गति तेज होने से नीरज को ज्यादा चोट लगती है। दूसरे धावक गिरे हुए नीरज के बगल से एक एक कर आगे निकल जाते है। नीरज की माँ भी अब अपने बेटे की हालत देख रोने लगती है। अब सबने मान लिए होता है की नीरज नहीं उठेगा।
पर पूरे मैदान में ऐसे दो लोग होते हैं जिन्हें पता होता है की नीरज जरूर खड़ा होगा और रेस पूरी करेगा। पहले उसके पिता जिन्हे अपने बेटे पर पूरा विश्वास था की वह भले ही प्रथम न आय पर वह हार तो नहीं मानेगा और दूसरा व्यक्ति था नीरज खुद जिसे अपने मेहनत पर पूरा विश्वास था।
नीरज ने अपनी बची हुई पूरी ताकत इकट्ठा की और खड़ा हुआ। लोगो को तो मानों अपनी आँखों पे विश्वास ही नहीं आ रहा था की यह आखिर खड़ा कैसे हो सकता था। नीरज ने धीमी गति में समापन रेखा की और दौड़ने लगा। सारे लोग अब बस नीरज को देख रहे थे। रेस कब की खत्म हो गई थी और कोई ओर धावक विजेता भी बन गया था।
नीरज धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा। अब बस एक नीरज ही था जो दौड़ रहा था। बाकी सारे धावको ने तो रेस कब की छोड दी थी। नीरज अब बस कुछ ही कदम दूर था फिनिश लाइन के। लोगो को भी उसका यह हौसला पसंद आ रहा था तो उसे किसी ने रोका भी नहीं। हालांकि उसके नाम के नारे अभी भी नहीं लग रहे थे।
तभी अचानक नीरज ठोकर खाकर वापस गिर गया। इस बार तो उसके घुटनो और चेहरे से निकलता हुआ खून साफ दिख रहा था। भीड़ ने फिर एक ठंडी आह… भरी। अब नीरज का खड़ा होना नामुकिन था। यह हर कोई समज चूका था।
नीरज हार कर भी जीत गया:
जैसे ही नीरज गिरा उसकी आंखे बांध हुई। उसकी आंखों के सामने वे सारे दृश्य आ गए जब वह तन तोड़ मेहनत कर रहा है। जब उसे लोग ताने दे रहे हैं, उसका मजाक उड़ा रहे है। उसके पिता द्वारा कही गई एक एक बात उसे अब अपने कानो में सुनाई देने लगी। उसे उठना था पर अपने शरीर पर से वो सारा कंट्रोल खो चूका था।
तभी अचानक उसके कानों में एक आवाज आ गिरती है, “उठ खड़े हो मेरे बेटे और जित ले अपनी जंग! ऐसे तू हार नहीं मान सकता! उठ….” यह आवाज चिंटु के पिताजी की होती है। नीरज, उसकी माता और यहाँ तकी सारी भीड़ हकाबका रह जाती है। सबको लगा की अब यह व्यर्थ है और नीरज नहीं उठ पायेगा।
पर तभी अचानक नीरज अपनी सारी जान लाकगार खड़े होने की कोसिस करता है, पर वह खड़ा नही हो पाता।नीरज ने अब हार न मानने की ठान ही ली थी। वह अपने शरीर को घिसड़ -घिसड़ कर आगे बढ़ने लगता है।
नीरज का यह हौसला, जुनून और हिम्मत देख कई लोग रो पड़ते है। पिता की आंखों में भी एक मोतीबिंदु आ जाता पर वह उससे पोछ जोर जोर से “नीरज….नीरज…..” के नारे लगाने लगते है। सारे दर्शक, खिलाड़ी, नीरज की माता और वह सारे लोग जिन्होंने नीरज को कभीना कभी ताना दिया था, कभी न कभी उसका मजाक बनाया था। वह सब एक साथ मिलकर नीरज के नाम के नारे लगाने लगते है।
शरीर को उही घिसड़ कर आखिर नीरज समापन रेखा पार कर लेता है और विजेता बन जाता है। सारी भीड़ नीरज को उठा लेती है और उसकी चारोओर बड़ी वाहवाई होने लगती है। नीरज आज रेस हार कर भी रेस जीत जाता है।
इस दिन के बाद सारे लोग नीरज को बड़ी सम्मान की नजरो से देखते है। तो ऐसे अपने हौसले के बलबूते पर नीरज अपनी प्रसिद्धि कमा लेता है।
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