IAS Savita Pradhan की दिल दहलादेने वाली सफलता की कहानी

आईएएस सविता प्रधान (IAS Savita Pradhan) आज भारत की सबसे ज्यादा सन्माननीय पद इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज (IAS) पर बीराजमान है, पर उनकी जिंदगी हमेंशा से ऐसी नहीं थी। एक छोटे से गाँव के आदिवासी परिवार में जन्मी सविता (Savita Pradhan) ने कैसे हजारो मुसीबतो का सामना करके दुःखो को अपने जीवन के पेड़ से सूखे पतों की तरह गिरा दिया आज इसी बात पर चर्चा करेंगे। तो चलिए जानते है कुछ नहीं से सब कुछ पा लेने की सविता प्रधान की वास्तविक प्रेणनादायक जीवन कहानी (Savita Pradhan Biography).

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IAS Savita Pradhan

जन्म और परिवार:

सविता (Savita Pradhan) का जन्म मध्यप्रदेश के एक छोटे से गाँव के आदिवासी परिवार में हुआ था। सविता अपने घर की तीसरी बेटी थी। परिवार बहुत ज्यादा गरीबी और परेशानियों से जुज्ज रहा था। सविता के माता पिता और बड़ी बहने गाँव के खेतो में फसल कटाई, महुआ चुनना, बीड़ी के पते तोडना और गोबर उठाना जैसे छोटे मोटे मजदूरी के काम कर अपनी आजीविका चलाते थे।  

गाँव में एक सरकारी स्कूल थी। सविता के गांव में ज्यादातर बच्चों को स्कूल नहीं भेजा जाता था, पर शायद आदिवासी समाज को मिलने वाली स्कॉलरशिप की लालच में आ कर सविता के पापा ने उसका स्कूल में दाखिला करवा दिया, पर पिता की यह लालच ने मानो आगे चल के सविता की सारी जिंदगी ही बदल दी। अब सविता सुबह चार-पांच बजे जल्दी उठकर परिवार के साथ मजदूरी करने को चली जाती और फिर दस बजे वापस आ कर स्कुल जाने के लिए निकल पड़ती।

छोटी सविता रोज स्कूल जाती और स्कूल से घर वापस आ कर अपने परिवार को काम में मदद करती। सविता पढाई में बहुत ही अच्छी थी पर उसने कभी आगे पढ़ने के बारे में सोचा नहीं था। वह अपने गाँव की दशवीं कक्षा तक पहुंचने वाली पहली लड़की थी। सविता दशवीं कक्षा में बड़े अच्छे नंबरो से पास हो गई और अपने गाँव की दशवीं कक्षा पास करने वाली पहली लड़की बनी।

बेटी सविता की कामयाबी पर पिता को खुशी तो हुई पर उन्होंने कभी सरितो को पढ़ा लिखाकर कुछ बनाने के बारे में नहीं सोचा था। सोचते भी कैसे? 3 बेटियों की जिम्मेदारी भी तो थी सर पर। सविता के पिता वैसे तो बुरे आदमी नहीं थे। सविता के अच्छे मार्क आये थे और उसकी पढ़ने के प्रति जिज्ञासा को देख, पिता ने सविता का पास ही के गाँव के एक सरकारी हाई स्कूल में दाखिला करवा दिया।

सात किलोमीटर चल कर जाती थी स्कूल :

स्कुल सविता के घर से तक़रीबन 7 किलोमीटर दूर थी। स्कुल तक जाने के लिए एक बस आती थी जिसका किराया करीबन 2 रुपए होता था। स्कुल तक जाने का एक रूपया और घर वापस आने का एक रूपया, पर यहाँ पिताजी पढ़ने को भेज रहे थे यही बड़ी बात थी। पैसे देने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता था और सविता अपने घर की स्थिति से भली भाती वाकिफ थी की गरीब पिता किराये के पैसे न दे सकेंगे।

सविता रोज 7 किलोमीटर चलकर स्कूल जाती और 7 किलोमीटर पैदल चलकर घर वापस आती। सविता ने विज्ञान प्रवाह के B ग्रुप में दाखिला लिया था। जहाँ मुख्य रूप से जीव विज्ञान पढ़ाया जाता है। दशवीं कक्षा में मिली कामियाबी के बाद मानो सविता के भी पर फूटे हो, वह भी ऊँचे गगन में उड़ने के सपने देखने लगी और उसने यह भी सोच लिया की वह डॉक्टर ही बनेगी।

कुछ समय बाद सविता की माता जी को उसी गाँव में जहाँ सविता की हाई स्कुल थी वही पर काम मिल गया और पूरा परिवार उसी गाँव में आ कर रहने लगा। अब सविता के लिए पढ़ने जाना ओर भी आसान हो चूका था और वह अब पढ़ लिखकर डॉक्टर बनेगी ऐसा सविता ने निर्धारित कर लिया था।

16 साल की सविता की शादी हो गई:

पर कहते है ना कुदरत के खेल निराले है। बिचारी सविता को कहा पता था की उसकी जिंदगी कुछ ही पलो में बिल्कुल बदल जाने वाली है। कुछ ही समय में एक अच्छे खासे रईस घर से सविता के लिए रिश्ता आया। लोग अच्छे खासे पढ़े लिखे थे बड़े बड़े पदों पर नियुक्त थे और काफी पैसे वाले भी थे। अब मानो सविता के पिता के लिए तो मानना ही मुश्किल हो गया था की इतने बड़े घर से सविता के लिए रिश्ता आया है।

सविता के पिता ने बिना कुछ सोचे समझे बस हां कर दी। उन्होंने ना ही कुछ जांच पड़ताल की, ना ही लड़के के बारे में जाना और यहाँ तक की उन्होंने लड़के का घर तक नहीं देखा था। फिर भी उन्होंने लड़के वालो की अमीरी देख सीधी हां कर दी। आखिर कौन पिता अपनी बच्ची को सुखी घर में देखना नहीं चाहेगे। सविता की बात पर अब अलग थी उसके सर पर पढ़ लिख डॉक्टर बनने की ज़िद सवार हो चुकी थी। सविता अपने पिताजी को शादी के लिए साफ़ साफ़ मना कर दिया और आगे पढ़ने की इच्छा जताई। 

सविता की एक न सुनी गई और उसके पापा ने रिश्ता तै कर दिया। इसका एक कारण शायद यह भी था की उनके होने वाले समधी यानि दूल्हे के पिता ने उनसे कहाँ था की, “कुछ ही समय पहले हमारी एक बेटी का निधन हो गया है जो डॉक्टर बनना चाहती थी, सविता को हम अपनी बेटी की तरह रखेंगे और पढ़ाएंगे।”

सविता के पिता जानते थे की सविता को पढ़ने का बहुत शौक है और उसे डॉक्टर बनना है, पर उनके पास पैसे नहीं है। न ही तो वो सविता के कोचिंग की फीस भरने को शक्षम है और ना ही तो उसकी कॉलेज की फीस भरने को उनके पास पैसे है। अगर सविता की शादी यहाँ वह करवा दे तो सविता जरूर पढ़ सकेगी। बेटी के लिए अच्छे की मंशा में वो बेटी को पूछना ही भूल गए और बिना सविता की इज़ाज़त उसकी शादी तै कर दी गई।

सविता के पिता ने ना ही तो घर देखा और ना ही दूल्हे की उम्र जो सविता से 10-11 साल बड़ा था और सविता मात्र 16-17 साल की एक बची थी जो अभी तक ठीक से जवान भी नहीं हुई थी। सविता की एक भी बात न सुनी गई। दूल्हे वालो के कहने पर जल्द से जल्द सगाई कर दी गई। सगाई के बाद लड़का बारी बारी कर अपने सारे रिश्तेदारो को सविता से मिलवाने लाया।

दूल्हे की बहन थी जो MBBS कर रही थी, लड़का उसे सविता से मिलवाने ले आया। उस वक्त सविता अपनी बड़ी बहन के साथ रसोई में बैठ, चूल्हे पर खाना बना रही थी। जब लड़का अपनी बहन को मिलने के लिए ले आया तब बिचारी सविता गाँव और गरीबी में पली बड़ी उसे क्या पता शहर के पढ़े लिखे लोगो का कैसे अभिवादन करते है। सविता तो दोनों हाथ जोड़ दूल्हे की बहन को नमस्कार कहा।

सविता (Savita Pradhan) को नमस्ते करते देख मानो दूल्हे इतना चीड़ गया की उसने सबसे सामने सविता की बेज़्ज़ती कर दी और बहुत कुछ भला बुरा बोला। सविता समज चुकी थी की यह कैसे लोग है। वह उम्र में तो छोटी थी अभी पर उसे साफ दिख रहा था की जो अगर इस लड़के से उसकी शादी हो गई तो वह कभी खुश नहीं रह पायेगी। उसने अब सबके सामने शादी करने के लिए इंकार कर दिया।

सब लोग मिलकर पूरी रात बस सविता को समझाते रहे की ऐसी छोटी मोटी बातो पर नाराज नहीं होना चाहिए। यह तो साधारण है, पर किसी ने दूल्हे को कुछ नहीं कहा। सविता सब समज रही थी। वह भले ही छोटी थी पर उसे खुदका भविष्य खतरे में दिख रहा था। उस पूरी रात सबने मिलकर सविता को इतना समझाया या मानो डराया की, सविता यह जानते हुए की उसका भविष्य खतरे में है उसने शादी के लिए हां कर दी। 

कुछ समय बाद सविता का विवाह करवा दिया गया। जब विवाह हुआ तब सविता महज एक 16-17 साल की थी। उसे ना तो शादी के कोई मायने पता थे ना रिश्तो और ससुराल के बारे में कोई इतनी समज थी। लड़के वाले बड़े लोग थे। शादी बड़ी धूमधाम से की और फिर रिसेप्शन भी दिया। शादी और रिसप्शन का माहौल दो तीन दिन तक चलता रहा और फिर सब मेहमान अपने घर की और चले गए और सविता भी अब अपने नए घर ससुराल में आ गई।

ससुराल में खाना भी नहीं मिलता था::

सविता (Savita Pradhan) का पहला ही दिन था घर में और उसे सीधा रसोई में भेज दिया गया। वहाँ उसकी ननद ने काली स्केच पेन से बड़े बड़े अक्षरों में लिख रखा था की पहले घर की सफाई करो फिर खाना बनाव। सविता का आत्मसमान मानो चूर चूर हो गया। उसने क्या आशाए रखी थी और उसके साथ क्या सलुख हो रहा है! घर के सारे लोग सविता के साथ नोकरो जैसा या कहुँ की उसे भी बुरा व्यवहार करते थे।

17 साल की सविता घर के सारे काम अकेली करती थी। इसके अलावा बूढी दादी साँस जो अपने बिस्तर से उठ भी नहीं पाती थी उनकी भी सारी सेवा करती थी। 17 साल की सविता न तो मानसिक और न तो शाररिक तोर से इन परेशानिओं के लिए तैयार थी। सविता ने अब इसको ही अपनी किस्मत समज लिया था और बिना आराम पुरे दिन बस नोकरो की तरह घर का काम करती रहती।

सविता को अब अपने माँ-बाप के घर के दिन याद आने लगे। चाहे भले उसे वहाँ काम करना पड़ता था पर समय पर खाना भी तो मिलता था। परिवार के लोग उसकी इज़्ज़त तो करते थे, पर यहाँ पर तो कुछ ओर ही माहौल था। पुरे दिन सविता मेहनत करती। घर के सारे काम करती पर खाना उसे जो सबके खाने के बाद बचा कुचा हो वही मिलता था।

सविता (Savita Pradhan) ने कभी मार पिट नहीं देखि थी, पर यहाँ पर मानो उसके पति का जब दिल करता तब वह बिना किसी वजह के बस सविता को बुरी तरह मारने पीटने लगता था। सविता यह बात कभी समझ नहीं पाई की आखिर कर उसे मारा क्यों जा रहा है। घर का कोई सदस्य विरोध भी नहीं करता था और बस चुपचाप बैठ सविता को मार पड़ते हुए सब देखते थे। कई बार तो सविता को इतना पीटा जाता की वह बेहोश ही हो जाती थी।

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IAS Savita Pradhan

सविता अंडरगारमेंट्स में रोटियाँ छुपा कर खाती थी:

खाना तो सविता (Savita Pradhan) खुद ही बनाती थी पर कई बार ऐसा होता था की उसे खाना ही नहीं मिलता था। सविता जब रोटियां बनाती तब वह दो रोटी अपने अंडर गारमेंट्स में छुपा कर बाथरूम में ले जाती थी और वही पर बैठ कर बिना किसी सब्जी के वह जल्दी जल्दी रोटियाँ खा लेती थी।

इन्ही मुसीबतो के बिच सविता के जीवन में एक दिन खुशियाँ आई. सविता के पिता एक दिन सविता से मिलने आए और उसी दिन सविता के पति ने उसे पीटा था। सविता का दुबला पड़ा शरीर और मार के घाव उसका हाल साफ बया कर रहे थे। सविता के जीवन का वह सबसे सुखी दिन था, जब उसके पिता उससे मिलने आये। सविता की आँखों में पिता को देख आंसू आ गए और उसने कहाँ, “पापा मुझे बस यहाँ से लेकर चलो अब में यहाँ और नहीं रह सकती।”

इतनी बात करते वो रो पड़ी और अपने पिता को सारा दुःख और दर्द एक ही सांस में सुना दिया। पिता ने कहाँ, “में शाम को आऊंगा और तुम्हे लेकर जाऊगा।” उस दिन तो मानो सविता के लिए सोने का सूरज ऊगा हो।

सविता (Savita Pradhan) आज बहुत खुश थी की आखिर उसे अपने पिता के घर जाने को मिलेगा और पुराने दिन वापस आ जायेगे। इस कैद खाने से वह बच जाएगी और फिर उसे कोई मारेगा भी नहीं।

शाम के चार बजे, सविता से अब सब्र नहीं हो रहा था। वह बार बार दरवाजे को देखती थी कही उसके पिता उसे लेने को आ तो नहीं गए ना। पांच बजे फिर छः, सात, आठ और ऐसे ही करते करते रात के 10 बज गए पर सविता को लेने कोई नहीं आया और वह समज गई थी की उससे जुठ बोला गया है। सविता को अफ़सोस इस बात का था की पिता भी उसकी दशा न समजे और पिता ने ही सविता से जुठ बोला।

अब सविता गर्भवती हो गई थी। यह बात जाने के बाद सविता की ननंद ने उसे एक दवाई खिलाई और दवाई खाते ही सविता बेहोश हो गई। जब सविता को होश आया तब वह किसी सरकारी अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी थी और ऊपर पंखा घूम रहा था। सविता न तो उठने के काबिल थी और ना ही वह बोल सकती थी। कुछ वह बस मोत का इंतज़ार करते करते पंखे को देखती रहती।

सविता का पति उसे बहुत मारता था:

डॉक्टर के इलाज से सविता कुछ ठीक हुई। उससे मिलने कोई नही आता था। डॉक्टर ने बताया की उसे कुछ खिला दिया गया है, जिससे यह रिएक्शन हुआ है। सविता ने अपने घर वालो को चिठ्ठी लिखी और थोड़े दिनों बाद उसके माता पिता आये और सविता को ले गए। कुछ दिनों बाद सविता के पिता उसे वापस उसके ससुराल छोडने जाने लगे।

सविता (Savita Pradhan) ने जाने से मना किया पर उसकी एक भी न सुनी गई। उसके पिता ने कहाँ, “धारा के विपरीत मत बेह, वरना कही नहीं पहुंचेगी।” इस का साफ़ मतलब था की उसके पिता बस उसे बंध मुँह सब सहने को कह रहे थे। सविता का मानो अब रिश्तो पर से भरोसा उठ ही गया था।  

सविता को फिर से उसके ससुराल भेज दिया गया। जहाँ उस पर फिर से जुल्म होना शुरू हो गए। सविता ने अपने पहले बचे को जन्म दिया और फिर कुछ ही समय बाद दूसरे को। उसकी स्थिति में कोई सुधार न आया। वह नोकरो की तरह ही रहती थी। खाना भी बचा कुचा मिलता था और आये दिन उसका पति उसे मारता रहता था।

सविता ने किया खुदकुशी का फैसला:

वह रोज बरोज की मार और मुसीबतो से इतना तंग आ गई थी की सविता ने खुदकुशी करने की अब सोच ली। सविता ने दरवाजा बंध किया और पहले अपने बच्चो को दूध पिलाया और खूब प्यार दिया। फिर एक साड़ी उसने पंखे से बाँधी और दूसरा कोना जैसे ही वह अपने गले में डालने जा रही थी वैसे ही उसकी नज़र खिड़की पर पड़ी, जो गलती से खुली रह गई थी।

उसकी सास उसे बाहर खड़ी देख रही थी, पर ना ही तो उसने सविता को रोकने की कोशिश की और ना हीं किसी को कुछ बताया। सविता के मन में अब आवाज आने लगी की, में इन लोगो के लिए अपनी जान दे रही हूँ जिन्हे मेरी जान की कोई कीमत ही नहीं है। नहीं, में नहीं मरुँगी और अब बस बहुत कर लिया सहन अब और नहीं।  

इसके बाद मानो उसकी जिंदगी ही बदल गई। सविता ने अपने घर को उसी वक्त छोड़ दिया और अब से कुछ और न सहने की कसम खाई। वह अपने एक रिश्तेदार के घर चली गई। सविता के पिता ने उसका बहुत विरोध किया पर सविता अब कुछ सुनने को तैयार नहीं थी। सविता की माता ने भी सविता का समर्थन दिया और उसके साथ आ कर रहने लगी।

सविता (IAS Savita Pradhan) अब पढाई भी करती, नौकरी भी करती और अपने बच्चो को भी संभालती। इस बीच उसके पति अभी भी कई बार सविता के पास आ जाता और उसे मार पिट कर लेता। सविता इतनी पढ़ी लिखी नहीं थी और अभी पढ़ ही रही थी तो उसे कोई बड़ी जॉब नहीं मिली और वह बस छोटी मोटी नौकरी करने लगी।

जिससे वह बस दो वक्त के दाल चावल खा सकते थे। सविता अभी भी इतनी सक्षम नहीं थी की वह अपने बच्चो को पार्लेजी बिस्कुट भी लाके दे। इसी बिच MA का रिजल्ट आया। रिजल्ट लेने जाने के लिए उसके पास किराये के भी पैसे नहीं थे। सविता ने अपने प्रोफेसर से पूछा और जानने को मिला की वह पूरी कॉलेज में टॉप आई है! सविता का कॉन्फिडेंस ओर ज्यादा बढ़ गया। वह अखबारों में आये दिन नौकरी के लिए आये कॉलम देखती थी।

सविता (IAS Savita Pradhan) एक अच्छी नौकरी की तलाश में तो थी ही। उस बिच उसकी किस्मत बदली, उसने देखा की UPSC यानि की सरकारी नौकरीओ की भर्ती थी। उस आर्टिकल में सिलेबस और बाकि सारी जानकारी थी। सविता ने आखिर में देखा तो उसकी आंखे फटी की फटी रह गई। सैलरी थी कुछ 12-16 हज़ार। सविता ने सोचा अगर वह यह परीक्षा पास कर लेगी तो उसकी सारी परेशानियाँ ख़तम हो जायेंगी।

 

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IAS Savita Pradhan Biography

सविता की किताब पर कुत्ते ने पेशाब कर दी:

सविता (IAS Savita Pradhan) लग गई मेहनत करने। इस बीच उसे कई मुसीबतो का सामना करना पड़ा, भूखा तक रहना पड़ा। सविता ने कभी हार नहीं मानी। एक बार तो ऐसा हुआ की सविता छत पर बैठ कर पढ़ रही थी और नीचे से माँ ने आवाज लगाई। वह किताब छत पर छोड़ कर ही  नीचे चली गई, और जब वापस आ कर देखा तो कुत्ते ने उस पर पेशाब कर दी थी।

यह देख सविता (Savita Pradhan) का हौसला एक बार के लिए डग मगाया। वह रोने लगी क्योंकी उसके पास दूसरी किताब खरीदने के पैसे नहीं थे। आखिर में उसने अपने आंसू पोछे और उसी किताब को धुप में सूखा कर पढ़ने लगी और यह सोच लिया की अगर वह खुद की मदद नहीं करेगी तो फिर उसकी मदद कोई नहीं करेगा।

उसी साल सविता ने UPSC की परीक्षा पास की और एक अच्छी पोस्ट के लिए सेलेक्ट हो गई। अब सविता की समाज में एक इज़्ज़त थी, एक रुतबा था। साथ ही साथ अच्छी तंखा और रहने के लिए सरकारी आवास भी था।

सविता की हिम्मत और पति से तलाक:

इस बीच उसका पति बार बार आता और बहुत बुरी तरह सविता को मारता था। सविता अभी भी अपनी बदनामी के डर से, लोगों और समाज के डर से कहीं न कहीं उसे सहते जा रही थी। पर एक दिन उसके सबर का बांध टुटा। सविता का पति आया और उसे मारने लगा। सविता ने सीधा पुलिस को फ़ोन लगाया। यह देख पति सविता को ओर ताकत के साथ मारने लगा। थोड़ी ही देर में पुलिस आ गई। सविता की हालत खराब हो गई थी।

सविता (Savita Pradhan) को ख़ुर्शी पर बहार बिठाया और उसके पति को पुलिस ने बराबर की मार मारी। मामला कोर्ट में गया और जज साहब ने सविता की हालत देख सविता की मांग को ध्यान में रख उसी दिन सविता और उसके पति के डिवोर्स को मान्य कर दिया और बच्चों की पूरी जिम्मेदारी सविता के हाथ में दे दी। सविता अब पूरी तरह से आज़ाद थी।

हाल सविता (IAS Savita Pradhan) मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले की डायरेक्टर है और अपने एक सहकर्मी से विवाह कर आज एक सुखी जीवन बिता रही है। सविता आज हजारो लड़कियों की प्रेणना बन अपने देश की सेवा कर रही है। सलाम है सविता के इस हौसले को।

Who is Savita Pradhan?

Savita Pradhan is an Indian IAS Officer.

Which year Savita Pradhan passed UPSC exam?

Savita passed her UPSC exam in 2017.

Where are Savita Pradhan now posted?

Savita Pradhan now posted on Gwalior (Madhya Pradesh).

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